जब कोई ख्याल दिल से टकराता है ॥
दिल ना चाह कर भी, खामोश रह जाता है ॥
कोई सब कुछ कहकर, प्यार जताता है॥
कोई कुछ ना कहकर भी, सब बोल जाता है ॥
कहाँ की दोस्ती किन दोस्तों की बात करते हो
मियां दुश्मन नहीं मिलता कोई अब तो ठिकाने का
तुम भी छोड़ दोगे साथ मेरा इस बेजान से जहाँ में,
कभी सोचा ना था....
मैं एक चट्टान था तेरी जिन्दगी मे,
हवा का झोंका ना था....
तुम आये जिन्दगी मे सपनों का जहाँ बसाये,
मैंने कभी रोका ना था....
बस एक बार कह तुझे मेरी मोहब्बत का वास्ता,
वो कभी धोका ना था....
ऐसे होंगे हालात मेरे ,
कभी सोचा ना था....
इरादा छोड़ दिया उसने हदों से जुड़ जाने का
ज़माना है ज़माने की निगाहों में न आने का
कहाँ की दोस्ती किन दोस्तों की बात करते हो
मियां दुश्मन नहीं मिलता कोई अब तो ठिकाने का
निगाहों में कोई भी दूसरा चेहरा नहीं आया
भरोसा ही कुछ ऐसा था तुम्हारे लौट आने का
ये मैं ही था बचा के खुद को ले आया किनारे तक
समंदर ने बोहोत मौका दिया था डूब जाने का
ये तमन्ना ही रही कि तर्के-आरजू करते
जीते रहते यूँ ही जीने की जुस्तजू करते
दस्तक ही न: दी मुहब्बत को जिसने हनोज़
अग़र आरजू थी, उल्फ़त की, आबरू करते
जकडा है मेरा रूहे-क़फ़स, जंजीरे-वक़्त ने
वरना हम मानिन्दे-बुलबुल, गुफ़त्गू करते
माना बेतर्तीब हूँ, लेकिन दिल बेनज़ीर है (क्रमहीन,असम्बन्ध )
काश हम भी मानिन्दे-गुलाब खुशबू करते
दीदारे-नूर होता है, उन बेमुरव्वत आँखों में
सुकूने-दिल के ख़ातिर, ख़ुद को रूबरू करते
मुरादे-दीद लेके आँख, मेरी कब की, सो गई
वक्ते-रुख़सत होती ईद ग़र वो रूबरू करते
खौफे-फ़ना, जुर्रत न: की, तख्लीक की हमने (निर्माण)
आशियाँना बनाते फिर बर्के-जुस्तजू करते
दीवानगी भी एक अजीब खेल है जालिम
लहू बहाकर भी हम आरजू-ए-लहू करते
दामने-एहसासे-दोस्ती ज़ार ज़ार ना हो
वगर्ना चाके-दामन कहीं पर तो रफू करते
बख्शी ख़ुदा ने हमको, तौफिक़ इतनी कि (शक्ति)
फ़लक़ को जमीं और जमीं को गर्दू करते (आकाश)
बलाए-बेदमाँ ने जीस्त को बेदार कर दिया (ना टलने वाली आपत्ति)
मुहब्बत इतनी थी कि सद लैला मजनू करते
तुम्ही से रौशने-हस्ती, तुम्ही हो नूरे-बेखुदी
मुहब्बत भी हम, शमा परवाने के, हुबहू करते
आयतें लिखते, कलम खूने-दिल में डुबाकर
नज़्मो-ग़ज़ल-ओ-गीत की तरह ख़ुशबू करते
ख़ुदा कसम वो मिलते तो ख़ुद को फ़ना करते
बेख़ुदी में इतना बहते, ख़ुद को ख़ुशखू करते (अच्छे स्वभाव वाला)
लिल्लाह इक बार तुम वापस तो चले आओ
जीने की जुस्तजू क्यों फ़ना की आरजू करते
रूबरू होकर भी कमल वो रूबरू नही होते
हम तो समझे थे वो हमे बेआबरू करते
नासमझ तो वो ना थे इतना..
के प्यार को हमारे समझ ना सके..
नासमझ तो वो ना थे इतना..
के प्यार को हमारे समझ ना सके..
पेश किया दर्द-ए-दिल हमने नगमों मे..
उसे भी वो सिर्फ “शेर” समझ बैठे… ||१||
———————————
बुराईया तो लाख देखी आपने..
पर दिलमॅ ना कभी झाक सके..
बुराईया तो लाख देखी आपने..
पर दिलमॅ ना कभी झाक सके..
कुसूर तो आपका भी नही है जनाब..
हम ही तो आपसे कभी कुछ कह ना सके..
टूटे दिलको ना सहलाओ कभी,
अंगारे सुलगते है इस ख़ाक में,
टूटे दिलको ना सहलाओ कभी,
अंगारे सुलगते है इस ख़ाक में,
ना जल जाए हाथ आपका, ए मेरे दोस्त,
इस दिलको तो आदत है…
इस दिलको तो अब आदत है… ||३||
हम शायर तो कभी न थे मगर,
आपके बेवफाईने शायरी सिखा दी...
हम शायर तो कभी न थे मगर,
आपके बेवफाईने शायरी सिखा दी...
हम आपको पलको में रखना चाहते थे मगर,
आपने अपनी "अवकात" दिखा दी...!!
दिल ना चाह कर भी, खामोश रह जाता है ॥
कोई सब कुछ कहकर, प्यार जताता है॥
कोई कुछ ना कहकर भी, सब बोल जाता है ॥
कहाँ की दोस्ती किन दोस्तों की बात करते हो
मियां दुश्मन नहीं मिलता कोई अब तो ठिकाने का
तुम भी छोड़ दोगे साथ मेरा इस बेजान से जहाँ में,
कभी सोचा ना था....
मैं एक चट्टान था तेरी जिन्दगी मे,
हवा का झोंका ना था....
तुम आये जिन्दगी मे सपनों का जहाँ बसाये,
मैंने कभी रोका ना था....
बस एक बार कह तुझे मेरी मोहब्बत का वास्ता,
वो कभी धोका ना था....
ऐसे होंगे हालात मेरे ,
कभी सोचा ना था....
इरादा छोड़ दिया उसने हदों से जुड़ जाने का
ज़माना है ज़माने की निगाहों में न आने का
कहाँ की दोस्ती किन दोस्तों की बात करते हो
मियां दुश्मन नहीं मिलता कोई अब तो ठिकाने का
निगाहों में कोई भी दूसरा चेहरा नहीं आया
भरोसा ही कुछ ऐसा था तुम्हारे लौट आने का
ये मैं ही था बचा के खुद को ले आया किनारे तक
समंदर ने बोहोत मौका दिया था डूब जाने का
ये तमन्ना ही रही कि तर्के-आरजू करते
जीते रहते यूँ ही जीने की जुस्तजू करते
दस्तक ही न: दी मुहब्बत को जिसने हनोज़
अग़र आरजू थी, उल्फ़त की, आबरू करते
जकडा है मेरा रूहे-क़फ़स, जंजीरे-वक़्त ने
वरना हम मानिन्दे-बुलबुल, गुफ़त्गू करते
माना बेतर्तीब हूँ, लेकिन दिल बेनज़ीर है (क्रमहीन,असम्बन्ध )
काश हम भी मानिन्दे-गुलाब खुशबू करते
दीदारे-नूर होता है, उन बेमुरव्वत आँखों में
सुकूने-दिल के ख़ातिर, ख़ुद को रूबरू करते
मुरादे-दीद लेके आँख, मेरी कब की, सो गई
वक्ते-रुख़सत होती ईद ग़र वो रूबरू करते
खौफे-फ़ना, जुर्रत न: की, तख्लीक की हमने (निर्माण)
आशियाँना बनाते फिर बर्के-जुस्तजू करते
दीवानगी भी एक अजीब खेल है जालिम
लहू बहाकर भी हम आरजू-ए-लहू करते
दामने-एहसासे-दोस्ती ज़ार ज़ार ना हो
वगर्ना चाके-दामन कहीं पर तो रफू करते
बख्शी ख़ुदा ने हमको, तौफिक़ इतनी कि (शक्ति)
फ़लक़ को जमीं और जमीं को गर्दू करते (आकाश)
बलाए-बेदमाँ ने जीस्त को बेदार कर दिया (ना टलने वाली आपत्ति)
मुहब्बत इतनी थी कि सद लैला मजनू करते
तुम्ही से रौशने-हस्ती, तुम्ही हो नूरे-बेखुदी
मुहब्बत भी हम, शमा परवाने के, हुबहू करते
आयतें लिखते, कलम खूने-दिल में डुबाकर
नज़्मो-ग़ज़ल-ओ-गीत की तरह ख़ुशबू करते
ख़ुदा कसम वो मिलते तो ख़ुद को फ़ना करते
बेख़ुदी में इतना बहते, ख़ुद को ख़ुशखू करते (अच्छे स्वभाव वाला)
लिल्लाह इक बार तुम वापस तो चले आओ
जीने की जुस्तजू क्यों फ़ना की आरजू करते
रूबरू होकर भी कमल वो रूबरू नही होते
हम तो समझे थे वो हमे बेआबरू करते
नासमझ तो वो ना थे इतना..
के प्यार को हमारे समझ ना सके..
नासमझ तो वो ना थे इतना..
के प्यार को हमारे समझ ना सके..
पेश किया दर्द-ए-दिल हमने नगमों मे..
उसे भी वो सिर्फ “शेर” समझ बैठे… ||१||
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बुराईया तो लाख देखी आपने..
पर दिलमॅ ना कभी झाक सके..
बुराईया तो लाख देखी आपने..
पर दिलमॅ ना कभी झाक सके..
कुसूर तो आपका भी नही है जनाब..
हम ही तो आपसे कभी कुछ कह ना सके..
टूटे दिलको ना सहलाओ कभी,
अंगारे सुलगते है इस ख़ाक में,
टूटे दिलको ना सहलाओ कभी,
अंगारे सुलगते है इस ख़ाक में,
ना जल जाए हाथ आपका, ए मेरे दोस्त,
इस दिलको तो आदत है…
इस दिलको तो अब आदत है… ||३||
हम शायर तो कभी न थे मगर,
आपके बेवफाईने शायरी सिखा दी...
हम शायर तो कभी न थे मगर,
आपके बेवफाईने शायरी सिखा दी...
हम आपको पलको में रखना चाहते थे मगर,
आपने अपनी "अवकात" दिखा दी...!!
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